बंकिम चन्द्र चटर्जी बंगला साहित्य के महान कवि और उपन्यासकार होने के साथ-साथ एक प्रसिद्ध पत्रकार भी थे। उन्होंने न सिर्फ बंगला भाषा में आधुनिक साहित्य की शुरुआत की बल्कि बंगला साहित्य को एक नई ऊंचाईयों तक पहुंचाने का काम किया। वे अपनी रचना ”वंदे मातरम” के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। उनके द्धारा लिखा गया यह राष्ट्रगीत आज भी लोगों के अंदर देशप्रेम की भावना विकसित करता है। आइए जानते हैं बंकिम चन्द्र चटर्जी के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में-
भारत के महान साहित्यकार बंकिमचन्द्र चटर्जी जी का जन्म पश्चिम बंगाल के परगना जिले के एक छोटे से गांव कंठाल पाड़ा के एक समृद्ध एवं संपन्न परिवार में 27 जून 1838 को हुआ था। इनके पिता जादव चन्द्र चट्टोपाध्याय एक सरकारी अधिकारी थे, जिन्होंने बाद में बंगाल के मिदनापुर के उपकलेक्टर के रुप में भी अपनी सेवाएं दी थी, जबकि उनकी मां दुर्गादेवी एक घरेलू महिला थी, जो कि अपने घर परिवार का बेहद ध्यान रखती थी।
बंकिम चन्द्र चटर्जी जी के दो भाई भी थे, उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने भाइयों के साथ मिदनापुर के ही एक सरकारी स्कूल से ग्रहण की थी। भारत के एलेक्जेंडर ड्यूमा माने जाने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार बंकिम चन्द्र जी शुरु से ही एक होनहार छात्र थे, उनका मन बचपन से ही पढ़ने-लिखने में रमता था।
और तो और बंकिम जी ने अपने स्कूल के दिनों में ही एक कविता लिखकर सबको अपनी अद्भुत लेखनी से चौंका दिया था। उन्हें संस्कृत भाषा से काफी लगाव था। वे पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद समेत तमाम स्कूल में होने वाली तमाम गतिविधियों में भी आगे रहते थे। अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद बंकिम चन्द्र चटोपध्याय ने अपनी आगे की पढ़ाई हुगली मोहसिन कॉलेज से की थी।
इसके बाद उन्होंने साल 1858 में 20 साल की उम्र में प्रेसिडेंसी कॉलेज से आर्ट्स से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की और इसी के साथ उन्हें 1857 के पहले स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में कलकत्ता यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने वाले वह पहले भारतीय बनने का गौरव हासिल हुआ। इसके बाद उन्होंने अपनी लॉ की डिग्री भी हासिल की।
बंकिम चन्द्र चटर्जी की शादी उस समय प्रचलित बाल विवाह की प्रथा के तहत महज 11 साल की उम्र में साल 1849 में हुई थी। वहीं उनकी शादी के करीब 11 साल बाद उनकी पत्नी का देहांत हो गया। जिसके बाद में उन्होंने साल 1860 में राजलक्ष्मी नाम की महिला से दूसरी शादी कर ली। शादी के बाद उन दोनों को तीन बेटियां पैदा हुईं।
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ब्रिटिश शासनकाल के दौरान सरकारी सेवा में मजिस्ट्रेट के तौर पर शामिल हो गए। करीब 30 साल तक ब्रिटिश सरकार के अधीन काम करने के बाद उन्होंने साल 1891 में नौकरी छोड़ने का फैसला लिया।
वहीं ब्रटिश सरकार के अधीन काम कर रहे बंकिम जी पर 1857 की क्रांति का काफी गहरा असर पड़ा था। उन्होंने इस दौरान किसी सार्वजनिक आंदोलन में तो हिस्सा नहीं लिया, लेकिन साहित्य के माध्यम से अंग्रेजों की कार्यप्रणाली एवं उनके प्रति अपना रोष व्यक्त किया।